२१२ २१२ २१२ २१२ अपने हालात पे यूँ ही लाचार है । हम कभी आम थे अब तो आचार हैं । है ये किसकी नजर आके हमको लगी , उम्र भर के लिए हम गिरफ्तार है । भूख हमको लगी रोटियाँ मांग ली, तब से उनके नजर ने गुनहगार हैं । जो दवा दे गया दर्दे दिल का हमें , सुन रहा इन दिनों वो भी बीमार हैं । चोर सब मिल गये पहरेदारों से फिर , की सियासत जरा अब वो सरकार है । थी दुवा मांग ली चंद खुशियाँ मिले, हाथ उस दिन से दोनों ही बेकार है ।
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.