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मुक्तक

तुझको खयालो में सही कुछ तो मैंने पाया था। ख्वाब टूटा तो ये जाना कि वो  तेरा साया था। तू चला जा कि अब मैं लौट कर न जाऊंगा, मैं तेरे साथ बहुत दूर चला आया था।

काम आया है

सुबह का भुला शाम आया है। हो करके बदनाम आया है। सियासत का रोग लगा था, करके सारे काम आया है। आस्तीन में छुरी है पर, मुँह पर अल्ला राम आया है। किस किस को लगाया चुना, बना के झंडुबाम आया है। खादी तन पर पहन के घुमा, होकर नँगा  हमाम आया है। वादे बड़े बड़े करता है, कभी किसी के काम आया है? अब के किसको चढ़ाएं सूली पहले मेरा नाम आया है। प्रसाद' रखता जेब में रोटी, क़बर में जा काम आया है। मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'

देशभक्ति की शायरी

1 कि श्रम के माथ से टपके, जो पानी हो तो ऐसे हो । वतन पर जान दे दे जो, जवानी हो तो ऐसे हो। तिरंगा ओढ़ कर लौटा है  जो ये वीर सरहद से हमें है नाज बतलाओ, कहानी हो तो ऐसे हो। 2 कोई पत्थर नहीं ऐसा , न उनपर नाज करता है । गिरा कर खून मिटटी पर ,चमन आबाद करता है। नमन करने जो जाते है, चढ़ा कर शीश आते हैं, माँ के उन लाडलो को आज दुनियां याद करता है। 3 बुलंदी और भी  है पर, उन्हीं की  बात निराली है, सहादत कर जो माटी चूमते है भाग्यशाली हैं, चमन का हर कली और फुल जिनका कर्ज ढोयेगा, कि अपनी  जान देकर जो   4 रुधिर जो लाल बहती है , मैं उनका मान जगाऊँगा। विप्लवी गान गा गा कर सोया स्वाभिमान जगाऊँगा। जगाऊँगा मैं राणा और शिवा के सन्तानो को, नारायण वीर जागेगा, मैं सोनाखान जगाऊँगा। 5 सजाकर अर्थियो में जिनको तिरंगा मान देती है। सहादत को उन वीरों के , माँ भारती सम्मान देती है। कि उन पर नाज करती है हिमालय की शिलाएं भी, चरण को चूम कर जिसके,  जवानी  जान देती है। 6 हजारो शत्रु आये पर , पर हमको कौन जीता है। कभी हिम्मत के दौलत से न हमारा हाथ रीता है। वंशज है भारत के हम ,धरम पर ...

एक सच

सुन कर आश्चर्य होगा मुझे ज्यादातर कविताएं तब सूझती है जब मैं टॉयलेट सीट पर बैठा होता हूँ। और वहाँ से उठकर , कागजपर लिखकर मैं  हल्का बहुत हल्का होता हूँ।

इंसानियत कहाँ खो गया ?

उस दिन बड़ा अजीब  हादसा हुआ मेरे साथ। मैंने कुछ पर्ची में विरुद्धर्थी शब्द लिख कर बच्चो में बाट दिया। कहा - अपने अपने उलटे अर्थ वाले शब्द जिनको मिले है खोज लो। कुछ देर तक बच्च...