उम्मीद उन्हें थी चाँद की,हम जमी के धुल निकले .
हमने चाह जहाँ फुल था वहां कटीले सुल निकले !
बेपनाह इन चाहतों ने ; चाहतों का दम है घोटा !
आरजू बाद रही रोज है , आदमी हो रहा है छोटा !
सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...
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