Saturday 7 January 2012

सचमुच बड़ा बत्तमीज़ है आदमी !

सोचता हूँ मैं ; जाने  क्या  चीज है आदमीं !
ज़िन्दगी रोग है , मरीज है आदमीं !!

खुद को कभी जो पहचान पाया हो ;
ऐसा भी  कोई खुशनशीब है आदमीं !!

बटता गया है खुद को जिसके नाम पर ;
उस खुदा से क्या वाकिफ है आदमी !!

जरा सी डोर टूटी , और सांसे थम गई ;
मौत के कितने करीब है आदमी !

पर आदमी का फिर भी गुरुर न गया
सचमुच बड़ा बत्तमीज़ है आदमी !



1 comment:

  1. सच में बहुत बदत्मीज है आदमी। बहुत सुन्दर रचना प्रासाद जी। बहुत बहुत बधाई।

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