हाड ,मांस, रक्त है , न रंच इसका आश कर !
नाशवान देह है ;मोह मुक्त पाश कर !!
अमर सदा है आत्मा ; नेह जन्म - जन्म का !
रूप रंग भूल कर आत्मा में वास कर ।
प्रेम का है मूल्य क्या , जो छान भर टिके नहीं ।
तृष्णा अतृप्त है ; भोग और विलाश कर ।
वासना है पुजती ; देह सौंदर्य को,
नाशवान देह है ;मोह मुक्त पाश कर !!
अमर सदा है आत्मा ; नेह जन्म - जन्म का !
रूप रंग भूल कर आत्मा में वास कर ।
प्रेम का है मूल्य क्या , जो छान भर टिके नहीं ।
तृष्णा अतृप्त है ; भोग और विलाश कर ।
वासना है पुजती ; देह सौंदर्य को,
याचना तो स्यार्थ है ; त्याग में विश्वास कर।
व्यर्थ का प्रपंच रच कोयला काया किया
बन कुंदन , कर साधना , सकल तृष्णा नाश कर ।
पा परम स्नेह मन का, बन आत्मीय मित्र बन ;
काम मृग मार दे ; अंत सब प्यास कर ।
व्यर्थ का प्रपंच रच कोयला काया किया
बन कुंदन , कर साधना , सकल तृष्णा नाश कर ।
पा परम स्नेह मन का, बन आत्मीय मित्र बन ;
काम मृग मार दे ; अंत सब प्यास कर ।
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