उम्मीद उन्हें थी चाँद की,हम जमी के धुल निकले .
हमने चाह जहाँ फुल था वहां कटीले सुल निकले !
बेपनाह इन चाहतों ने ; चाहतों का दम है घोटा !
आरजू बाद रही रोज है , आदमी हो रहा है छोटा !
212 212 212 212। ऐसे झूठे बहाने से क्या फायदा। रूठ कर मान जाने से क्या फायदा। प्यार है दिल में तो क्यों न महसूस हो, है नहीं फिर ...
No comments:
Post a Comment