Saturday, 7 January 2012

उम्मीद

उम्मीद उन्हें थी चाँद की,हम जमी के धुल निकले . 
हमने चाह जहाँ फुल था वहां कटीले सुल निकले ! 
बेपनाह इन चाहतों ने ; चाहतों का दम है घोटा ! 
आरजू बाद रही रोज है , आदमी हो रहा है छोटा !  

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