उम्मीद उन्हें थी चाँद की,हम जमी के धुल निकले .
हमने चाह जहाँ फुल था वहां कटीले सुल निकले !
बेपनाह इन चाहतों ने ; चाहतों का दम है घोटा !
आरजू बाद रही रोज है , आदमी हो रहा है छोटा !
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.
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