Saturday, 7 January 2012

जिगर पीते है.

हम जुदाई में गम का जहर पीतें है ।
रोकती है ये दुनियाँ  मगर पीतें है ।

कौन कहता है हाथों में शराब है ,
घोल कर जाम में हम जिगर पीते है।

कभी कभी सारा सहर लड़खड़ाता है 
उनके यादों में हम इस कदर पीतें है ।

होश आता नहीं बिन पिये इसलिए,
यारो हम अब साम ओ सहर पीतें है ,


किसे  है प्रसाद चाहत तेरे जीने की,
हर अंजाम से हो हम बेखबर पीते है ।





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