नशा, नश-नश में समाई आज के समाज के !
नशे के गुलाम हो रहे सारे नवजवान आज के !
पीढ़ी - दर-पीढ़ी इसका प्रचार चल रही है !
इसी के कमाई से तो ये सरकार चल रही है !
सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...
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