कभी जनता, कभी सरकार बिकता है । कभी कुर्सी , कभी दरबार बिकता है । हर चीज है यहाँ बिकाऊ दोस्तों ; कोई छुप कर, कोई सरेबाजार बिकता है । कभी शहर-शहर ,कभी गाँव-गाँव बिकता है । कोई किलो-किलो ,कोई पाव-पाव बिकता है । हर चीज की अलग-अलग कीमत है मित्रों; कोई कौड़ियों में,कोई करोडो के भाव बिकता है । कही खून, कहीं पसीना आज बिकता है । कहीं पत्थर कहीं सोना कहीं ताज बिकता है । सब कुछ तो लोग खरीदते है यारों ; तभी तो माँ-बहनों का लाज बिकता है । कहीं खस्सू, कहीं खुजली, कहीं दाद बिकता है । कभी दवा , कभी दारू, कभी इलाज बिकता है । लोकतंत्र हो जाता है बीमार मेरे साथी ; जब अखबार वालों का आवाज बिकता है । कोई ख़ुशी-ख़ुशी, कोई होकर मजबूर बिकता है । कोई अपनों के लिए,होकर दूर बिकता है । तकदीर के तराजू में तूल जाता है हर आदमी आदमी है तो जिंदगी में जरुर बिकता है । मथुरा ...