Thursday 20 October 2011

घटायें तो घिर आती है, बरसात नहीं होती !

बेगानों से गुजर जाते है कोई बात नहीं होती !
हम उनसे रोज मिलते है मगर मुलाकात नहीं होती ।

सूखे बंजर खेत जैसी जिंदगी का बेहाल है;
घटायें  घिर तो आती है, मगर बरसात नहीं होती ।

भाग-दौड़, खीचा-तानी ओर थकान भरे ये दिन;
सहर की गलियों में क्या रात नहीं होती !

वो कह गई होती है ,सब की अपनी मजबूरियां
कोई तमाम उम्र किसी के साथ नहीं होती ।

न होता गम ,न खुसी ,न आँशु, न हंसी 
जब आदमी के दिलों में जज्बात नहीं होती।

प्रसाद" नाकामियों में खो न देना हौसले
हमेशा गर्दिशों में हालत नहीं होती ।

मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद"

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