सिद्धांतो के जरजर सड़क पर
पुराने सिलेपर की तरह '
बीना थके ,निरन्तर ;
घिस रहाँ हूँ !
तले वही हैं,
सिर्फ फीते बदल-बदल कर;
वक्त की बेरहम चक्की में
पिस रहा हूँ !
शानदार हाइवे पर
द्रुत गति से
वे दौड़तें हैं !
और मुझपर कलंक जैसे ,
काले धुवें छोड़तें है !
मुझे पछाड़ते ,
निज कर्कश स्वर में चिढातें है
किन्तु कुछ दूर जाकर
वो रुक जाते है !
मगर मैं ;
मगर मैं फिर भी चलता रहता हूँ ,
बिना थके निरंतर
कछुए की चाल से
अपने कर्तव्य पथ पर !
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