Thursday 20 October 2011

कर्तव्य पथ पर !


सिद्धांतो के जरजर सड़क पर 
पुराने सिलेपर की तरह '
बीना थके ,निरन्तर ;
घिस रहाँ हूँ !
तले वही हैं,
सिर्फ फीते बदल-बदल कर;
वक्त की बेरहम चक्की में
 पिस रहा हूँ !
शानदार हाइवे पर 
द्रुत गति से 
वे दौड़तें हैं ! 
 और मुझपर  कलंक जैसे ,
काले धुवें छोड़तें है !
मुझे पछाड़ते ,
 निज कर्कश स्वर में चिढातें है 
किन्तु कुछ दूर जाकर 
वो रुक जाते है !
मगर मैं ;
मगर मैं फिर भी चलता रहता हूँ ,
बिना थके निरंतर 
कछुए की चाल  से 
अपने कर्तव्य पथ पर !




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