सब हो मगर थोड़ी कमी रहे मौला ।
ताकि आदमी फकत आदमीं रहे मौला ।
तू उड़ने को चाहे आसमान दे दे
पांवों तले मगर जमीं रहे मौला ।
हर ओठों को दे इक खुसनुमा मुसकान
और नैनो में थोड़ी सी नमी रहे मौला ।
तू रोटी लिख सब के नसीब में ,
भूख भी मगर लाज़मी रहे मौला ।
सुबह जब मैं अखबार देखता हूँ
क्यों लगता है के तुम नहीं रहे मौला ।
सुनने वाले प्रसाद जब तक रहेंगे
आपनी महफ़िल यूँ ही जमीं रहे मौला ।
No comments:
Post a Comment