Thursday 20 October 2011

थोड़ी कमी रहे मौला !


सब  हो  मगर  थोड़ी कमी रहे मौला ।
ताकि आदमी फकत आदमीं रहे मौला ।

तू उड़ने को चाहे आसमान दे  दे 
पांवों तले मगर जमीं रहे मौला ।

हर ओठों को दे इक खुसनुमा मुसकान 
और नैनो में  थोड़ी सी नमी रहे मौला ।

तू रोटी लिख सब के नसीब में ,
भूख भी मगर लाज़मी रहे मौला ।

 सुबह जब मैं अखबार देखता हूँ
क्यों लगता है के तुम नहीं रहे मौला ।

सुनने वाले प्रसाद जब तक रहेंगे
आपनी महफ़िल यूँ ही जमीं रहे मौला ।

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