मुझे भूख नहीं है ,
नहीं चाहिए मुझे रोटी !
प्यासा नहीं हूँ मैं !
पानी भी नहीं चाहिए ;
कोई दे सके तो दे मुझे ;
एक मुठ्ठी भूख !
और एक चुल्लू प्यास!
भूख वो जाओ आदमी को
बनता है आदमी !
प्यास वो जो सिखाती है
आदमी को आदमियत !
मैं लौट जाना चाहतो हूँ ;
फिर उसी बर्बरता के युग में !
जहाँ आदमी होता था नंगा ;
नहीं पहनता था कपडे !
और नहीं झांकता था वो ;
कपड़ों में ढके , अनढके तन को !
भूखा होता था आदमी ;
पर कभी नहीं खता था
आदमी, आदमीं को !
नहीं पीता था तब कभी ;
प्यासा आदमी भी
आदमी के खून को !
भुख के उपर आपकी रचना बहुत ही सुंदर है सर जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।