पेड़ के पत्तों सा टूटता हर आदमी ;
पल पल तनहाइयों में घुटता हर आदमी !
पड़ रहे डाके हर रोज़ अमन -चैन पर
प्रति -छान आसहय सा लुटता हर आदमी !
धर्म ,जाति,कौम, और ये उंच -नीच;
जाने किस किस नाम से बाटता हर आदमी !
चरित्र और नैतिकता का गिरता हुआ मूल्य ;
कौड़ियों के भाव बिकता हर आदमी !
बदल रहा चहरे आदमी के हर रोज़ ;
हर पल आदमियत से भागता हर आदमी !
दिलों में हो रहे दरार क्यों आज कल ;
आदमी से आजकल क्यों रूठता हर आदमी !
भटके हुए रास्ते ,बे हिसाब आबादियाँ ;
रास्ते बरबादियों के पूछता हर आदमी !
हो रहा दो-चार हादसों से हर घडी ;
आदमी के भीड़ से जूझता हर आदमी!
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