भूल कर लेरी गलियां वो किधर जायेगा !
तेरी आरजू में जी रहा था, मर जायेगा !
तू एक नज़र मुस्कुरा के देख तो ले
बदनसीबों का मुकद्दर स्वर जायेगा !
हुस्न-ओ-जोवानी पे मत उन गुमान कर
माटी का खिलौना है बिखर जायेगा !
मौत आनी आये, मगर मौत के ख्याल
आदमी क्या आदमी से दर जायेगा
काँटों से दामन बचाता रहा था
फूलो से बचाकर नज़र जायेगा ?
जद्दो जहद में गुजारी तमाम उम्र ,
थक गया है प्रसाद अब घर जायेगा !
मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद"
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