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आंधियां तेज है मत अकड़ झुक !


सरफ़रोसों की प्रजातियाँ विलुप्त हुई,
आंधियां तेज है, मत अकड़ झुक ।

सर सलामत रहा तो फिर देखा जायेगा,
सर उठाने का वक्त  आएगा रुक !

महफिलों में मची है,कव्वों की काव-काव,
कौन सुनेगा यहाँ कोयल की कुक !

इसलिए की अखबारों की सुर्ख़ियों  में नाम हो,
गिरेबान मत झाक ,आसमां पे थूक !

शेर की दहाड़ अब गए दिनों की बात है,
आज कल फैसन में है कुत्ते की भूंक !

सच बोला बेटा तो फिर जुटे खायेगा,
झूठ न बोल सको   तो रहो सदा मूक !

रोटियां जिनके लिए फ़क्त खेलने की चीज है,
वो क्या जाने किसी बच्चे का भूख !

लो सबक "प्रसाद" उनकी मक्कारियों से ,
जिनके तिजोरियों में बंद है ज़माने का सुख!
  

                             --मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद"

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मुक्तक छत्तीसगढ़ी

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