जमी बाँट कर अम्बर को बाँटने वोलों .!
गाँव,गली,मोहल्ला, सहर को बाँटने वालों !
किस तरह होते हैं जिंदगी के चिथड़े;
देख लो आकर मेरे घर को बाँटने वालों !
खुशियों के चरागों को कभी बाट कर के देखो ;
अँधेरी रातों में दर को बांटने वालों !.
मत करो दूर किस्तियो को लहरों से
टुकड़ो टुकड़ों में समन्दर को बांटने वालो !
नफ़रत के आग में खुद तुम ही जल जावोगे
नवाजवां हाथों में खंजर को बांटने वालों !
प्यार के नाम पर क्या क्या इम्तहान दूँ
दीवाने प्रसाद क जिगर को बाँटने वालों!
मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद"
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