पैगाम लिए फिरता हूँ कोई दर नहीं मिलता !
भटकता हूँ दर-दर मगर घर नहीं मिलता!
आकेले ही चलना है शायद नशीब में;
इसीलिए तो कोई हमसफ़र नहीं मिलता!
दो कदम कोई साथ चले मेरे भी,
रही अगर कोई उम्र भर नहीं मिलाता !
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.
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