धुंवा ही धुंवा में बुझा हुवा चिराग हूँ !
कोई लुट कर मेरा दिवाली चला गया !
इस बाग में लौट कर बहार क्या आयेगी,
सुलगता हुआ छोड़ जिसे माली चला गया !
दीवारों की सिसकियाँ यहाँ कौन सुनेगा ?
इस आँगन से रोता हुआ खुसहाली चला गया !
मेरे इस सवाल का जवाब देगा कौन
एक सवाल बन कर सवाली चला गया !
आया थो तेरी दुनियां में बड़ी आरजू लेकर;
प्रसाद' हाथ पसारे वो खाली चला गया !
----- मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'
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