Thursday, 20 October 2011

छोड़ दो प्रसाद दिन में तारे देखना !

चमकेंग किसी दिन तो सितारे देखना !
साचा होंगे कभी सपने भी हमारे देखना !

उनको देखना ,मेरा इस तरह देखना;
डूबते किस्ती का जैसे किनारे देखना !

फांकाकासी देती है सुकून क्या जिंदगी में;
बना तुम मेरी तरह बंजारे देखना !

जब भी देखा तुने , मेरा ऐब ही देखा ;
जुल्म है तेरा यूँ आधे नज़ारे देखना !

जब कोई ठुकराएगा तुमको ,तुम्हारी तरह ;
कम आयेंगे मेरे अंशु तुम्हारे देखना,

वो पराये हो गए ,उनकी आरजू न कर ;
छोड़ दो प्रसाद दिन में तारे देखना !

मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद"

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