कवि मथुरा प्रसाद वर्मा
Thursday, 20 October 2011
पैगाम
पैगाम लिए फिरता हूँ कोई दर नहीं मिलता !
भटकता हूँ दर-दर मगर घर नहीं मिलता!
आकेले ही चलना है शायद नशीब में;
इसीलिए तो कोई हमसफ़र नहीं मिलता!
दो कदम कोई साथ चले मेरे भी,
रही अगर कोई उम्र भर नहीं मिलाता !
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