Thursday, 20 October 2011

पैगाम


पैगाम  लिए  फिरता हूँ कोई दर नहीं मिलता ! 
भटकता  हूँ दर-दर मगर घर  नहीं मिलता!

आकेले  ही  चलना  है  शायद नशीब में;
इसीलिए तो   कोई हमसफ़र नहीं मिलता! 

दो कदम कोई साथ चले मेरे भी,
रही अगर कोई उम्र भर नहीं मिलाता !

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