Thursday 20 October 2011

क्या-क्या करें ?


क्या-क्या  करें  ? क्या-क्या   न  करें  ?
हमने  उनपे  सब  छोड़ा  है  
जो  करना  है  वो  खुदा  करे  !

बचपन  की  उखड़ती  सांसे  है ,
ममता  की  बेबस  आँखें  है,
वो  फिर  भी  महलें  बनायेंगे ;
कोई  मरता  है  ,तो  मारा  करे   !

यहाँ   खून   से  आणता  सन्ति  है ,
तब  जाकर  रोटी  बनती  है ,
हर  दाने   पर  पहरे  बैठें  हैं ;
जिंगें  भूख  लगे  वो  दुवा  कर  !

जब  जुल्म    की  आंधी  चलती  है ;
इंसाफ  कुचल  दी  जाती  है ,
यहाँ  न्याय  गवाही  मांगेगी  ;
अन्याय  बहले  ही  हुआ  करे  !


यहाँ  सच्ची  हमेशा  हरता  है 
और  झूठ  ही  बजी  मरता  है  
प्रसाद  " मगर  सच  बोलेगा  ;
कोई  सुने  या  अनसुना  करे  !

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