Thursday, 20 October 2011

भला सा आदमी हूँ

 बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन
2122, 2122, 2122 

आदमी हूँ मैं भला  सा आदमी हूँ.
हाथ अपनों के छला  सा  आदमी हूँ । 

फूँक कर  के छाछ  पीता  हूँ मगर क्यों 
दूध से  फिर भी जला  सा आदमी हूँ । 

रात आहट  सुन जरा सा कांप  जाता 
मै उजालों से डरा सा आदमी हूँ । 


इन दिनों हूँ मैं खजूर पर लटक रहा
आसमानो  से  गिरा सा आदमी हूँ  । 


भाग कर दुनियां कहाँ  तक आ गई है
मैं किनारे पर खड़ा  सा आदमी हूँ  । 

रोटियों  ने नींद रातों  की 
 उड़ा दी 
भूख मरता  मैं  दला  सा आदमी  हूँ । 


एक ठोकर  मार तू भी  माथ  मेरे  
पाँव तेरे  मैं पड़ा  सा आदमी हूँ। 

        ------- मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'' 

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