ऐ मेरी कविता ! मैं सोचता हूँ लिख डालूं , तुम पर भी एक कविता ! रच डालूं अपने बिखरे कल्पनाओं को रंग डालूं स्वप्निल इन्द्र धनुषी रंगों से, तेरी चुनरी ! बिठाऊँ शब्दों की डोली में और उतर लाऊँ इस धरा पर ! किन्तु मन डरता है ह्रदय सिहर जाता है , तुम्हे अपने घर लाते हुए ! की कहीं तुम टूट न जाओ उन सपनों की तरह तो बिखर गए टूट कर !
न जाने कब मौत की पैगाम आ जाये जिन्दगी की आखरी साम आ जाए हमें तलाश है ऐसे मौके की ऐ दोस्त , मेरी जिन्दगी किसी के काम आ जाये.