ऐ मेरी कविता !
ऐ मेरी कविता !
मैं सोचता हूँ लिख डालूं ,
तुम पर भी एक कविता !
रच डालूं
अपने बिखरे कल्पनाओं को
रंग डालूं
स्वप्निल इन्द्र धनुषी रंगों से,
तेरी चुनरी !
बिठाऊँ शब्दों की डोली में
और उतर लाऊँ
इस धरा पर !
किन्तु मन डरता है
ह्रदय सिहर जाता है ,
तुम्हे अपने घर लाते हुए !
की कहीं तुम टूट न जाओ
उन सपनों की तरह
तो बिखर गए टूट कर !
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