Thursday 20 October 2011

ऐ मेरी कविता !


ऐ मेरी कविता !

ऐ मेरी कविता  !
मैं सोचता हूँ लिख डालूं ,
तुम पर भी एक कविता ! 

रच डालूं 
अपने बिखरे कल्पनाओं  को 
रंग डालूं 
स्वप्निल इन्द्र धनुषी रंगों से,
तेरी चुनरी !

बिठाऊँ शब्दों की डोली में 
और उतर लाऊँ
 इस धरा पर !

किन्तु मन डरता है 
ह्रदय सिहर जाता है ,
तुम्हे अपने घर लाते हुए !


की कहीं तुम टूट न जाओ 
उन सपनों की तरह 
तो बिखर गए टूट कर !

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