Thursday 20 October 2011

क्या क्या करें क्या न करें

क्या क्या करें क्या क्या न करें? 
हमने उनपे सब छोड़ा है ;
जो करना है वो खुदा करे.
 
बचपन की उखड्ती साँसे हैं।
ममता की बेबस आँखें है।
वो फिर भी महल बनायेंगे,
कोई मरता है तो मारा करे.
 
यहाँ खून से आटा सनती है,
तब जाकर रोटी बनती है.
हर दाने पे पहरें बैठें है,
जिन्हें भूख लगे वो दुआ करे.
 
जब जुल्म की आंधी चलती है
इंसाफ कुचल  दी जाती है.
यहाँ न्याय गवाही मांगेगी ,
अन्याय भले ही हुवा करे.

No comments:

Post a Comment

ढाई इंच मुस्कान

सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...