कवि मथुरा प्रसाद वर्मा
Sunday 11 June 2023
ढाई इंच मुस्कान
Wednesday 7 September 2022
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
कहो सुनोगे आज हमारी, या फिर अब भी समय नहीं है।
बकबक करता जाता हूँ मैं,ध्यान तुम्हारा और कहीं है।
कहना सुनना लो रहने दु, क्या रक्खा है इन बातों में।
मगर कभी घण्टो होती थी, छुप छुप कर उन मुलाकातों में।
हार गए है पर उस दिन हम, इसी हार को जीत लिखे थे।
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
याद तुम्हे है उन्ही दिनों हम, नई नई गजलें कहते थे।
तुम्हे बिठा कर सपनों में ही, घण्टो बतियाया करते थे।
नई नई कविता लिखते थे, अब भी जो अच्छे लगते है।
यति गति छन्द राग नही पर, शब्द शब्द सच्चे लगते है।
हर शब्दो मे तुम्हे पता है, तुझको ही मनमीत लिखे थे।
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
किसी किताबो के झुरमुठ में, पड़े हुए है कही कही पर।
बीवी बच्चों से डर से ही, कभी छुपा कर रखा वहीं पर।
दबे दबे उन पन्नों से भी, आह कभी तो उठती होगी।
उन गीतो को गा न सका पर, गाऊँगा जब तुम बोलोगी।
उन गीतों में हमने मिलकर, कभी प्रीत के रीत लिखे थे।
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
Sunday 4 September 2022
क्या उससे भी बुरा होगा
Sunday 28 August 2022
मुक्तक
Thursday 19 May 2022
मुक्तक
महरण घनाक्षरी
Friday 6 May 2022
मुक्तक : घरों को तोड़ने वाले।
Wednesday 26 January 2022
शेर
Sunday 26 September 2021
कुण्डल छन्द:मद्यपान
कुण्डलिया : मित्रता
Sunday 18 April 2021
दु गीत मया के गावन दे।
Monday 1 March 2021
मुक्तक : मोर अँगरी धर चलव।
Wednesday 17 February 2021
अमृत ध्वनि छंद : मोर कराही
Wednesday 10 February 2021
छत्तीसगढ़ी गजल : बेंच दे है सब कलम बाजार मा।
Tuesday 20 October 2020
प्रसाद के पद : सखी री, जूते उनको मार
Tuesday 13 October 2020
छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल - रोज सुध कर के जेकर छाती जरे
लेस दे जे घर अपन वो मोर सँग मा आय।
Tuesday 6 October 2020
लेस दे जे घर अपन वो मोर सँग मा आय।
Sunday 16 August 2020
कुण्डलिया
होरी हर मन मा जलय, मिटय कुमत कुविचार।
मथुरा मया गुलाल ले, नाचय बीच बजार।
नाचय बीच बाजार, फाग गा गा संगी।
मदहा समझय लोग, समझ ले कोई भंगी।
पिचकारी भर रंग, छन्द बरसाहँव गोरी।
साधक सब सकलाय, मात गे हमरो होरी।
Saturday 15 August 2020
एक पैरोडी
कइसे तरे
कइसे तरे
कइसे तरे हो रामा कइसे तरे।
भजन बिना प्राणी कइसे तरे।
भटक रहा दुनियाँ क्यों मारा मारा ।
क्या लेके आया था क्या है तुम्हारा।1।
जब तक तू पर हेत खोदेगा खाई।
सुख पायेगा कैसे तू मेरे भाई।2।
ये दुनियादारी तुझको तो दुख देगा भारी।
आनंद के सागर है मेरे बाकेबिहारी।2।
इस दुनिया मे किसका कौन है सहारा।
रामनाम जप मनवा तू पायेगा किनारा ।4।
भजन श्यामसुंदर है भजन सुर-मीरा ।
भजन राम तुलसी और पागल कबीरा।5।
मुक्तक
चरण की वंदना करके, नवा कर शीश बोलूंगा।
सिया मजबूरियों ने था, ओठ वो आज खोलूंगा।
मेरी हक की जो रोटी है मुझे देदो मैं भूखा हूँ,
नहीं तो बाजुओं से फिर तेरी औकात तोलूँगा।
तेरी कुर्सी तेरा सत्ता सियासत आज रोयेगा।
मेरी आँखों का पानी आज सारे दाग धोएगा।
मेरा बच्चा जो रोता आया सदियो भूख के आशु,
जो आशु आँख से उतरा यहाँ बारूद बोयेगा।
Sunday 19 January 2020
अमृत धावनि छंद : काँटा
नेता मन ला आज के, जोंक बरोबर जान ।
जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सबला।
बन के हितवा, स्वारथ खातिर, लूटय हमला ।
धरम जात मा, काट काट के, बाँटय बाँटा ।
आगुवाए ले, सदा गोड़ ला, रोकय काँटा ।
Sunday 13 January 2019
कुण्डलिया
दोहे
तब तब रोटी रुठ कर, खोज रही मनुहार।
अम्मा जाने बेहतर, बच्चों से संसार ।
क्यों बकरी से भेड़िया, जता रहा है प्यार।
पतझर मुझसे माँगता, मेरा रोज बसन्त।
सावन नैनो को सदा, देकर जाते कन्त।
लाेकतंत्र है बावरे, क्यों कर रहा बवाल।
बढ़िया छुरा देख कर, हो जा आज हलाल।
Saturday 12 January 2019
आल्हा : मुसवा
सुनलो सन्तो मोर कहानी,पहिली आल्हा आज सुनाँव।।
एक बिचारा मुसवा सिधवा, कारी बिलई ले डर्राय।
जब जब देखे नजर मिलाके, ओखर पोटा जाय सुखाय।।
बड़े बड़े नख दाँत कुदारी, कटकट कटकट करथे हाय।
आ गे हे बड़ भारी विपदा, कोन मोर अब प्रान बचाय।।
देखे मुसवा भागे पल्ला, कोन गली मा मँय सपटाँव।
नजर परे झन अब बइरी के,कोन बिला मा जाँव लुकाँव।
आघू आघू मुसवा भागे , बिलई गदबद रहे कुदाय।
भागत भागत मुसवा सीधा, हड़िया के भीतर गिर जाय।
हड़िया भीतर भरे मन्द हे, मुसुवा उबुक चुबुक हो जाय।
पी के दारू पेट भरत ले,तब मुसवा के मति बौराय।
अटियावत वो बाहिर निकलिस, आँखी बड़े बड़े चमकाय।
बिलई ला ललकारन लागे, गरब म छाती अपन फुलाय।
अबड़ तँगाये मोला बिलई , आज तोर ले नइ डर्राव।
आज मसल के रख देहुँ मँय, चबा चबा के कच्चा खाँव।
बिलई सोचय ये का होगे, काकर बल मा ये गुर्राय।
एक बार तो वो डर्रागे, पाछु अपन पाँव बढ़ाय।।
बार-बार जब मुसवा चीखे , लाली लाली आंख दिखाय।
तभे बिलइया हा गुस्सागे, एक झपट्टा मारिस हाय।
तर- तर तर -तर तेज लहू के, पिचकारी कस मारे धार।
प्राण पखेरू उड़गे तुरते, तब मुसवा हर मानिस हार।
तभे संत मन कहिथे संगी, गरब करे झन पी के मंद।
पी के सबके मति बौराथे, सबके घर घर माथे द्वंद।
घर घर मा हे रहे बिलइया, रहो सपट के चुप्पे चाप।
बने रही तुहरो मरियादा, गरब करव झन अपने आप।
Saturday 9 June 2018
रूपमाला
तुम किरण थी मैं अँधेरा, हो सका कब मेल।
खेल कर हर बार हारा, प्यार का ये खेल।।
नैन उलझे और सपने , बुन सके हम लोग।
आज भी लगता नही ये, था महज संजोग।1।
आप रोटी सेंक अपना, चल दिये श्रीमान।।
मैं सहूँगा हर सितम को , मुस्कुराकर यार।
आप ने मेरी मुहब्बत, दी बना बाजार।2।
Thursday 1 March 2018
कोई हादसा हो गया होगा ।
Saturday 27 May 2017
मुक्तक
तुझको खयालो में सही कुछ तो मैंने पाया था।
ख्वाब टूटा तो ये जाना कि वो तेरा साया था।
तू चला जा कि अब मैं लौट कर न जाऊंगा,
मैं तेरे साथ बहुत दूर चला आया था।
Tuesday 21 February 2017
काम आया है
सुबह का भुला शाम आया है।
हो करके बदनाम आया है।
सियासत का रोग लगा था,
करके सारे काम आया है।
आस्तीन में छुरी है पर,
मुँह पर अल्ला राम आया है।
किस किस को लगाया चुना,
बना के झंडुबाम आया है।
खादी तन पर पहन के घुमा,
होकर नँगा हमाम आया है।
वादे बड़े बड़े करता है,
कभी किसी के काम आया है?
अब के किसको चढ़ाएं सूली
पहले मेरा नाम आया है।
प्रसाद' रखता जेब में रोटी,
क़बर में जा काम आया है।
मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'
Tuesday 24 January 2017
देशभक्ति की शायरी
वतन पर जान दे दे जो, जवानी हो तो ऐसे हो।
तिरंगा ओढ़ कर आया है जो शहीद सरहद से
कि हमको नाज है उनपर कहानी हो तो ऐसे हो।
गिरा कर खून मिटटी पर जो ,चमन आबाद करता है।
नमन करने को जो जाते है कट कर शिश भूमि पर,
माँ के उन लाडलो को आज दुनियां याद करता है।
सहादत कर जो माटी चूमते है भाग्यशाली हैं,
वतन का जर्रा जर्रा शदियों तक उनका कर्ज ढोएगा
कि अपनी जान दे कर करते वतन की रखवाली है।
4
विप्लवी गान गा गा कर सोया स्वाभिमान जगाऊँगा।
जगाऊँगा मैं राणा और शिवा के सन्तानो को,
नारायण वीर जागेगा, मैं सोनाखान जगाऊँगा।
सहादत को उन वीरों के , माँ भारती सम्मान देती है।
कि उन पर नाज करती है हिमालय की शिलाएं भी,
चरण को चूम कर जिसके, जवानी जान देती है।
कभी हिम्मत के दौलत से न हमारा हाथ रीता है।
वंशज है भारत के हम ,धरम पर मर मिटने वाले,
खड्ग एक हाथ में थामे तो दूजे हाथ में गीता है।
जो वतन से प्यार करता है, वो इस चाहत पे मरता है।
रहे खुशहाल मेरा देश और देशवासी भी,
अमर मरकर वो हो जाता है जो भारत पे मरता है।
शहीदों ने जिस ख़ातिर हँस कर चुम ली फाँसी।
दिलाई कैसे कहते है हमें चरखे ने आजादी ।
हम कैसे भूलकर उनकोएक अभी खुशियां मनाएंगे,
की जिनके खून के कीमत से हमने पाई आजादी।
हम हथेली पे जान रखते है।
हौसलो में तूफ़ान रखते है।
कह दिया है मेरे देश के सेना ने,
हम भी मुह में जुबान रखते है।
चंद रुपियो के खातिर देशहित से जी चुराते है।
धमकाते है हमारी सेना पर जो तानकर हथियार
हम चीनी माल ले लेकर उनका हौसला बढ़ाते है।
Saturday 21 January 2017
एक सच
सुन कर आश्चर्य होगा
मुझे ज्यादातर कविताएं
तब सूझती है
जब मैं
टॉयलेट सीट पर बैठा होता हूँ।
और वहाँ से उठकर,
कागजपर लिखकर
मैं हल्का बहुत हल्का होता हूँ।
इंसानियत कहाँ खो गया ?
उस दिन बड़ा अजीब हादसा हुआ मेरे साथ।
मैंने कुछ पर्ची में विरुद्धर्थी शब्द लिख कर बच्चो में बाट दिया।
कहा - अपने अपने उलटे अर्थ वाले शब्द जिनको मिले है खोज लो।
कुछ देर तक बच्चे सोर कर के पूरे कक्षा में अपने साथी खोजते रहे।
सच कह रहा हूँ
सारे शब्द मिले
उनके विरुद्धर्थी शब्द मिल गए
एक बच्चा वो पर्ची लेकर अकेले खड़ा था
जिसपर मैंने बड़े बड़े अक्षरों में हैवानियत लिखा था।
इंसानियत कहाँ खो गया आज तक नहीं मिला।
मथुरा प्रसाद वर्मा
Monday 9 January 2017
लाचार हो गया हूँ।
Wednesday 26 October 2016
न टूटे
तुम इतना दुआ करना कि अपना साथ न छूटे ।।
भले मझधार में हो कश्ती तूफा कहर बरपाये।
तुम इतना हौसला रखना मेरा हाथ न छूटे।।
शौक से मुस्कुराना तुम तुम्हारे मुस्कुराने से
मगर ये ख्याल भी रखना किसी का दिल कही न टूटे।।
महफ़िल है तो महफ़िल में बहुत् होंगे शिकायते
किसी के रूठ जाने से मगर ये महफ़िल न टूटे।
मेरी कविता
ऐ मेरी कविता !
ऐ मेरी कविता !
मैं सोचता हूँ लिख डालूं ,
तुम पर भी एक कविता !
रच डालूं अपने बिखरे कल्पनाओं को
रंग डालूंस्वप्निल इन्द्र धनुषी रंगों से,
तेरी चुनरी !
बिठाऊँ शब्दों की डोली में
और उतर लाऊँ इस धरा पर !
किन्तु मन डरता है
ह्रदय सिहर जाता है ,
तुम्हे अपने घर लाते हुए !
की कहीं तुम टूट न जाओ
उन सपनों की तरह
जो बिखर गए टूट कर !
पलके बिछाएं हूँ अब तक !
उनके चाहत के सपने सजाएँ हूँ अब तक !उनके यादों को सिने में बसाये हूँ अब तक !
वो मासूम चेहरा, वो झील सी गहरी आँखें ;वो उनका मुस्काना ,वो उनका शर्माना,भोली सूरत को आँखों में छुपाये हूँ अब तक !
छुप-छुप के हमफिर हथेली से अपना सहारा छुपाना ;कुछ भी तो नहीं भुला पाए हूँ अब तक !
वो जागी जागी, रातें वो तेरी बातें ;वो जुदाई के दिन , और वो मुलाकातें ;उन्ही यादों में कहाँ , सो पाए हूँ अब तक !
प्यासी-प्यासी सी मेरी भीगी निगाहें ;ताकती रहती है तेरी वो सुनी राहें ; तेरी राहों में पलके बिछाएं हूँ अब तक !
Tuesday 7 June 2016
उजाले के फरेब
अन्धियारे को
छलना चाहता था।
वो किरण को अपने चेहरे पर,
मलना चाहता था।
वो पगला था ,
दिए की तरह
जलना चाहता था ।
सच्चाई के पथ
पर अकेले,
चलना चाहता था।
उसने सीखा था
जीवन से ,
सिर्फ अन्धियारे से डरना।
बहुत मुश्किल होता है
बिना तेल और बाती के जलना।
वो नहीं जनता था
उजाले के फरेब को।
उजाला टटोलती है,
आदमी के जेब को।
उजाले के चकाचौंध ने
हर आदमी को छला है।
पतंगा है तो
कभी न कभी
जरूर जला है ।
वो गिरा है
अक्चकाकर वहाँ,
जहाँ उजाले का घेरा है।
और
तब से अब तक
उसके आँखों में
सिर्फ अँधेरा है।
मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद"
Wednesday 18 May 2016
याद तुम्हारी आती है।
जब कोई कली शरमाती है।
खिल उठती है कली कोई,
गलियाँ महक जब जाती है।
तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।
चलती है बसन्ती मन्द पवन,
झूम उठता है तन मन।
चिड़ियों की सुन युगल तान
जब साम ढल जाती है।
तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।
मतवाला हो जाता ये गगन।
झूम कर बरसता जब सावन।
घुमड़-घुमड़ कर काली घटा,
जब धरती पर छा जाती है।
तो सच प्रिये !
याद तुम्हारी आती है।
ऊँचे-ऊँचे परवत शिखर पर ,
नित बहते है जहां निर्झर।
दूर क्षितिज के छोर पर
जहां नभ् भी झुक जाती है।
तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।
कभी तारों की बारातों में।
जब देखूं चाँदनी रातों में।
करती चाँद अठखेली
जब बादल में छिप जाती है।
तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।।
दूर कहीं जब गाँवों में।
बजती है पायल पावों में।
आकर सजन की बाँहों में
नववधू कोई शरमाती है।।
तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।।
अरे सावन ! तुम क्यों आते हो।
बादल बन कर छा जाते हो।
रिमझिम बरखा बरसाते हो।
प्रिय मिलन की आश जगा कर
बिरहन को तरसाते हो।
अरे सावन! तुम क्यों आते हो।
ला कर शीतल पुरवाई तुम,
डाल डाल महकते हो।
विरहा मन मेें आग लगाकर
तुम क्यों मुझे रुलाते हो।
अरे! सावन तुम क्यों आते हो।
प्रेम सुधा तुम बरसा कर
वसुधा की प्यास मिटाते हो।
और इधर तुम प्रेम बावरी के,
मन की प्यास बढ़ाते हो।
अरे सावन! तुम क्यों आते हो।
तेरे कदम भी बहके क्यों?
मैं हुआ मदहोश था पर,
तेरे कदम भी बहके क्यों?
एक बून्द की आस न हो?
छलकते गागर को देखूं ,
क्यों थोड़ी भी प्यास न हो?
गगरी तेरी छलके क्यों?
मेरी अपनी आदत थी।
एक दिया जले इस आँगन में,
यह भी तो मेरी चाहत थी।
तुम शोला बन दहके क्यों?
पतझर ही था मेरा जीवन।
मान विधाता की नियति,
कभी न चाहा मैंने उपवन।
कोई विहंग फिर चहके क्यों।।
Monday 1 February 2016
मुक्तक
नजर में हो कोई परदा, नजारा हो तो कैसे हो ।।
कोई जब डूबना चाहे , किनारा हो तो कैसे हो।।
किसी के हो न पाये तुम, यहां पल भी मुहब्बत में,
बताओ तुम यहाँ कोई, तुम्हारा हो तो कैसे हो।
Sunday 10 January 2016
Wednesday 18 November 2015
घोटाले देंगे
सपने बड़े निराले देंगे।।
हर रोज नए घोटाले देंगे।।
राजनेता हम इस देश को।
बीवी ,बच्चे और साले देंगे।।
चाबी दे दे कर चोरों को
फोकट में सबको ताले देंगे।।
घासलेट महंगी हुई तो क्या है
नई दुल्हन को जलाने देंगे।।
सीमेंट ,रेत ,छड़ खाने वाले
भूखों को क्या निवाले देंगे।
काम न दे पाये हाथो को
तो त्रिशूल तलवार भाले देंगे।
अख़बार चलाने वाले हम तुमको
हर रोज नए मसाले देंगे ।
घर अपना जलाकर 'प्रसाद'
कब तक गैरो को उजाले देंगे।
जीवन के सपने
मैंने चाहा था कभी
जीवन के बेरंग कैनवास पर
हसिन सपनो से रंग देना।
मैं उम्रभर भागता रहा
उन्ही सपनो के पीछे।
तलाशता रहा दुनियाँ भर के रंग
ताकि जीवन हो सके रंगीन
सपनों की तरह।
किन्तु इस प्रयास में
न जाने कब ?
न जाने कैसे ?
जीवन हो गया बदरंग।
कैसे बिखर गए सपने
कैसे की बेवफाई
बेहया रंगों ने।
कितना अच्छा था मेरा जीवन
जन बेरंग था।
कम से कम
एक उम्मीद तो थी
रंग बिरंगे सपनो से
रंगे जाने की।
जीवन
जीवन
जीवन क्या सिर्फ इसलिए है
कि चाहे जैसे भी हो जिया जाये ।
इस हलाहल को पीना ही है तो
क्यों न मुस्कुरा कर पिया जाये।
कोई लक्षय नही पथ ही पथ है
और उनपर चलना सिर्फ चलना है।
सुविधाओ का बाट जोहते
आखिर कब तक हाथ मलना है।
संघर्षों से जी चुराते हुए
समझौते और कितने करने होंगे।
पल भर और जीने के लिए
कितनी बार और मरने होंगे।
कितना जी पता है मानव
जीवन को जीवन के जैसे।
साँसे हो गई है महंगी और
जीवन मुट्ठी के खोटे पैसे।
Tuesday 2 June 2015
प्यास
वो चींखने चिल्लाने वाले कौन है ?
कौन है?
कौन है ?
जो भूखे है ?
जो प्यासे है ?
बेघर है?
नंगे है ?
क्या उनके दंगे है ?
अरे नहीं !
उन्हें भला कहा फुर्सत है ?
वो क्यों चीखेंगे ?
क्यों चिल्लायेंगे?
वो सब तो मौन है।
फिर भला ये कौन है?
ये वो है
जो ख़ास मौको पर आते है
हमारी भूख और प्यास
रोटी और गरीबी को
जो लोग भुनाते है।
ये वही लोग है जो चिल्लाते है
जो हमारी प्यास से
अपनी प्यास बुझाते है।
ढाई इंच मुस्कान
सुरज बनना मुश्किल है पर , दीपक बन कर जल सकते हो। प्रकाश पर अधिकार न हो, कुछ देर तो तम को हर सकते हो । तोड़ निराश की बेड़ियाँ, ...
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