कवि मथुरा प्रसाद वर्मा
Wednesday, 4 September 2024
शिक्षक दिवस मुक्तक
Saturday, 20 July 2024
एक मुक्तक
Thursday, 6 June 2024
मुक्तक छत्तीसगढ़ी
Wednesday, 29 May 2024
मुक्तक : चलना सीख जाओगे
सुना करते हो क्यों इनकी,
ये कुछ क्या खास करते है।
जो कुछ भी कर नहीं सकते,
वही बकवास करते है।
लगाते है ये औरों पर
बड़े लाँछन लगाने दो,
बुरा खाने से अच्छा है
चलो उपवास करते है।
अगर खाने पे मन अटके
कभी उपवास मत करना।
कभी छल कर किसी का मन,
कहीं भी रास मत करना।
तपोवन घर लगेगा जब
सरल मन ये तुम्हारा हो,
हो मैला जब भी ये दर्पण,
किसी के पास मत करना।
अगर घाटे का सौदा हो,
कभी व्यापार मत करना।
नफा नुकसान जब सोचो,
तो फिर तुम प्यार मत करना।
जहाँ बेमोल बिक जाने से
तुझको भी लगे अच्छा,
ये सौदा कर तो सकते हो
मगर हर बार मत करना।
गधे के सींग जैसे हैं
न जाने कब दिखाई दे।
गले मिलने चले आते है,
जब मतलब दिखाई दे।
खुदा महफूज रक्खे तुमको
इन मक्कार यारों से,
मेरे बेटे सम्हल कर चल
ये काँटे जब दिखाई दे।
सहीं कहते थे बाबूजी,
खुसी औ गम नहीं होंगे।
हमेशा एक जैसा कोई भी
मौसम नहीं होंगे।
तुझे गिरना सम्हल जाना,
खुदी से सीखना होगा।
ये उँगली थामने तेरा
हमेसा हम नहीं होंगे।
निकल कर देख लो घर से
सम्हलना सीख जाओगे।
गिरोगे और उठोगे जब तो
चलना सीख जाओगे।
भले रोके कोई भी राह
तुम परवाह मत करना;
यूँ ही चलते रहो आगे
निकलना सीख जाओगे।
चढ़ोगे जब बुलन्दी पर,
तभी ये फिर के आएंगी।
मुसीबत की घटा जीवन में
अक्सर घिर के आएंगी।
कभी गिरने के डर से पाँव को
मत लड़खड़ाने दो,
डरो मत हौसला रक्खो
के हिम्मत गिर के आएगी।
बड़ी जो कामयाबी है,
मुसीबत साथ लाती है।
बुलन्दी पर पहुँच अक्सर
कदम भी लड़खड़ाती है।
मेरे बच्चे सम्हलकर चल
नहीं अब हौसला टूटे,
कि हिम्मत से मुसीबत की
कमर भी टूट जाती है।
सभी रोकेंगे तेरी राह
बाधाएं डराएंगे।
ये गढ्ढे और पत्थर ही
तुम्हे चलना सिखाएंगे ।
नहीं रुकना किसी भी चोट से
डर कर मेरे बच्चे,
गिरोगे चोट खाकर जब
अकल के दाँत आएंगे।
Tuesday, 28 May 2024
Sunday, 11 June 2023
ढाई इंच मुस्कान
Wednesday, 7 September 2022
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
कहो सुनोगे आज हमारी, या फिर अब भी समय नहीं है।
बकबक करता जाता हूँ मैं,ध्यान तुम्हारा और कहीं है।
कहना सुनना लो रहने दु, क्या रक्खा है इन बातों में।
मगर कभी घण्टो होती थी, छुप छुप कर उन मुलाकातों में।
हार गए है पर उस दिन हम, इसी हार को जीत लिखे थे।
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
याद तुम्हे है उन्ही दिनों हम, नई नई गजलें कहते थे।
तुम्हे बिठा कर सपनों में ही, घण्टो बतियाया करते थे।
नई नई कविता लिखते थे, अब भी जो अच्छे लगते है।
यति गति छन्द राग नही पर, शब्द शब्द सच्चे लगते है।
हर शब्दो मे तुम्हे पता है, तुझको ही मनमीत लिखे थे।
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
किसी किताबो के झुरमुठ में, पड़े हुए है कही कही पर।
बीवी बच्चों से डर से ही, कभी छुपा कर रखा वहीं पर।
दबे दबे उन पन्नों से भी, आह कभी तो उठती होगी।
उन गीतो को गा न सका पर, गाऊँगा जब तुम बोलोगी।
उन गीतों में हमने मिलकर, कभी प्रीत के रीत लिखे थे।
तुम पर भी कुछ गीत लिखे थे।
Sunday, 4 September 2022
क्या उससे भी बुरा होगा
Sunday, 28 August 2022
मुक्तक
Thursday, 19 May 2022
मुक्तक
महरण घनाक्षरी
Friday, 6 May 2022
मुक्तक : घरों को तोड़ने वाले।
Wednesday, 26 January 2022
शेर
Sunday, 26 September 2021
कुण्डल छन्द:मद्यपान
कुण्डलिया : मित्रता
Sunday, 18 April 2021
दु गीत मया के गावन दे।
Monday, 1 March 2021
मुक्तक : मोर अँगरी धर चलव।
Wednesday, 17 February 2021
अमृत ध्वनि छंद : मोर कराही
Wednesday, 10 February 2021
छत्तीसगढ़ी गजल : बेंच दे है सब कलम बाजार मा।
Tuesday, 20 October 2020
प्रसाद के पद : सखी री, जूते उनको मार
Tuesday, 13 October 2020
छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल - रोज सुध कर के जेकर छाती जरे
लेस दे जे घर अपन वो मोर सँग मा आय।
Tuesday, 6 October 2020
लेस दे जे घर अपन वो मोर सँग मा आय।
Sunday, 16 August 2020
कुण्डलिया
होरी हर मन मा जलय, मिटय कुमत कुविचार।
मथुरा मया गुलाल ले, नाचय बीच बजार।
नाचय बीच बाजार, फाग गा गा संगी।
मदहा समझय लोग, समझ ले कोई भंगी।
पिचकारी भर रंग, छन्द बरसाहँव गोरी।
साधक सब सकलाय, मात गे हमरो होरी।
Saturday, 15 August 2020
एक पैरोडी
कइसे तरे
कइसे तरे
कइसे तरे हो रामा कइसे तरे।
भजन बिना प्राणी कइसे तरे।
भटक रहा दुनियाँ क्यों मारा मारा ।
क्या लेके आया था क्या है तुम्हारा।1।
जब तक तू पर हेत खोदेगा खाई।
सुख पायेगा कैसे तू मेरे भाई।2।
ये दुनियादारी तुझको तो दुख देगा भारी।
आनंद के सागर है मेरे बाकेबिहारी।2।
इस दुनिया मे किसका कौन है सहारा।
रामनाम जप मनवा तू पायेगा किनारा ।4।
भजन श्यामसुंदर है भजन सुर-मीरा ।
भजन राम तुलसी और पागल कबीरा।5।
मुक्तक
चरण की वंदना करके, नवा कर शीश बोलूंगा।
सिया मजबूरियों ने था, ओठ वो आज खोलूंगा।
मेरी हक की जो रोटी है मुझे देदो मैं भूखा हूँ,
नहीं तो बाजुओं से फिर तेरी औकात तोलूँगा।
तेरी कुर्सी तेरा सत्ता सियासत आज रोयेगा।
मेरी आँखों का पानी आज सारे दाग धोएगा।
मेरा बच्चा जो रोता आया सदियो भूख के आशु,
जो आशु आँख से उतरा यहाँ बारूद बोयेगा।
Sunday, 19 January 2020
अमृत धावनि छंद : काँटा
नेता मन ला आज के, जोंक बरोबर जान ।
जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सबला।
बन के हितवा, स्वारथ खातिर, लूटय हमला ।
धरम जात मा, काट काट के, बाँटय बाँटा ।
आगुवाए ले, सदा गोड़ ला, रोकय काँटा ।
Sunday, 13 January 2019
कुण्डलिया
दोहे
तब तब रोटी रुठ कर, खोज रही मनुहार।
अम्मा जाने बेहतर, बच्चों से संसार ।
क्यों बकरी से भेड़िया, जता रहा है प्यार।
पतझर मुझसे माँगता, मेरा रोज बसन्त।
सावन नैनो को सदा, देकर जाते कन्त।
लाेकतंत्र है बावरे, क्यों कर रहा बवाल।
बढ़िया छुरा देख कर, हो जा आज हलाल।
Saturday, 12 January 2019
आल्हा : मुसवा
सुनलो सन्तो मोर कहानी,पहिली आल्हा आज सुनाँव।।
एक बिचारा मुसवा सिधवा, कारी बिलई ले डर्राय।
जब जब देखे नजर मिलाके, ओखर पोटा जाय सुखाय।।
बड़े बड़े नख दाँत कुदारी, कटकट कटकट करथे हाय।
आ गे हे बड़ भारी विपदा, कोन मोर अब प्रान बचाय।।
देखे मुसवा भागे पल्ला, कोन गली मा मँय सपटाँव।
नजर परे झन अब बइरी के,कोन बिला मा जाँव लुकाँव।
आघू आघू मुसवा भागे , बिलई गदबद रहे कुदाय।
भागत भागत मुसवा सीधा, हड़िया के भीतर गिर जाय।
हड़िया भीतर भरे मन्द हे, मुसुवा उबुक चुबुक हो जाय।
पी के दारू पेट भरत ले,तब मुसवा के मति बौराय।
अटियावत वो बाहिर निकलिस, आँखी बड़े बड़े चमकाय।
बिलई ला ललकारन लागे, गरब म छाती अपन फुलाय।
अबड़ तँगाये मोला बिलई , आज तोर ले नइ डर्राव।
आज मसल के रख देहुँ मँय, चबा चबा के कच्चा खाँव।
बिलई सोचय ये का होगे, काकर बल मा ये गुर्राय।
एक बार तो वो डर्रागे, पाछु अपन पाँव बढ़ाय।।
बार-बार जब मुसवा चीखे , लाली लाली आंख दिखाय।
तभे बिलइया हा गुस्सागे, एक झपट्टा मारिस हाय।
तर- तर तर -तर तेज लहू के, पिचकारी कस मारे धार।
प्राण पखेरू उड़गे तुरते, तब मुसवा हर मानिस हार।
तभे संत मन कहिथे संगी, गरब करे झन पी के मंद।
पी के सबके मति बौराथे, सबके घर घर माथे द्वंद।
घर घर मा हे रहे बिलइया, रहो सपट के चुप्पे चाप।
बने रही तुहरो मरियादा, गरब करव झन अपने आप।
Saturday, 9 June 2018
रूपमाला
तुम किरण थी मैं अँधेरा, हो सका कब मेल।
खेल कर हर बार हारा, प्यार का ये खेल।।
नैन उलझे और सपने , बुन सके हम लोग।
आज भी लगता नही ये, था महज संजोग।1।
आप रोटी सेंक अपना, चल दिये श्रीमान।।
मैं सहूँगा हर सितम को , मुस्कुराकर यार।
आप ने मेरी मुहब्बत, दी बना बाजार।2।
Thursday, 1 March 2018
कोई हादसा हो गया होगा ।
Saturday, 27 May 2017
मुक्तक
तुझको खयालो में सही कुछ तो मैंने पाया था।
ख्वाब टूटा तो ये जाना कि वो तेरा साया था।
तू चला जा कि अब मैं लौट कर न जाऊंगा,
मैं तेरे साथ बहुत दूर चला आया था।
Tuesday, 21 February 2017
काम आया है
सुबह का भुला शाम आया है।
हो करके बदनाम आया है।
सियासत का रोग लगा था,
करके सारे काम आया है।
आस्तीन में छुरी है पर,
मुँह पर अल्ला राम आया है।
किस किस को लगाया चुना,
बना के झंडुबाम आया है।
खादी तन पर पहन के घुमा,
होकर नँगा हमाम आया है।
वादे बड़े बड़े करता है,
कभी किसी के काम आया है?
अब के किसको चढ़ाएं सूली
पहले मेरा नाम आया है।
प्रसाद' रखता जेब में रोटी,
क़बर में जा काम आया है।
मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'
Tuesday, 24 January 2017
देशभक्ति की शायरी
वतन पर जान दे दे जो, जवानी हो तो ऐसे हो।
तिरंगा ओढ़ कर आया है जो शहीद सरहद से
कि हमको नाज है उनपर कहानी हो तो ऐसे हो।
गिरा कर खून मिटटी पर जो ,चमन आबाद करता है।
नमन करने को जो जाते है कट कर शिश भूमि पर,
माँ के उन लाडलो को आज दुनियां याद करता है।
सहादत कर जो माटी चूमते है भाग्यशाली हैं,
वतन का जर्रा जर्रा शदियों तक उनका कर्ज ढोएगा
कि अपनी जान दे कर करते वतन की रखवाली है।
4
विप्लवी गान गा गा कर सोया स्वाभिमान जगाऊँगा।
जगाऊँगा मैं राणा और शिवा के सन्तानो को,
नारायण वीर जागेगा, मैं सोनाखान जगाऊँगा।
सहादत को उन वीरों के , माँ भारती सम्मान देती है।
कि उन पर नाज करती है हिमालय की शिलाएं भी,
चरण को चूम कर जिसके, जवानी जान देती है।
कभी हिम्मत के दौलत से न हमारा हाथ रीता है।
वंशज है भारत के हम ,धरम पर मर मिटने वाले,
खड्ग एक हाथ में थामे तो दूजे हाथ में गीता है।
जो वतन से प्यार करता है, वो इस चाहत पे मरता है।
रहे खुशहाल मेरा देश और देशवासी भी,
अमर मरकर वो हो जाता है जो भारत पे मरता है।
शहीदों ने जिस ख़ातिर हँस कर चुम ली फाँसी।
दिलाई कैसे कहते है हमें चरखे ने आजादी ।
हम कैसे भूलकर उनकोएक अभी खुशियां मनाएंगे,
की जिनके खून के कीमत से हमने पाई आजादी।
हम हथेली पे जान रखते है।
हौसलो में तूफ़ान रखते है।
कह दिया है मेरे देश के सेना ने,
हम भी मुह में जुबान रखते है।
चंद रुपियो के खातिर देशहित से जी चुराते है।
धमकाते है हमारी सेना पर जो तानकर हथियार
हम चीनी माल ले लेकर उनका हौसला बढ़ाते है।
Saturday, 21 January 2017
एक सच
सुन कर आश्चर्य होगा
मुझे ज्यादातर कविताएं
तब सूझती है
जब मैं
टॉयलेट सीट पर बैठा होता हूँ।
और वहाँ से उठकर,
कागजपर लिखकर
मैं हल्का बहुत हल्का होता हूँ।
इंसानियत कहाँ खो गया ?
उस दिन बड़ा अजीब हादसा हुआ मेरे साथ।
मैंने कुछ पर्ची में विरुद्धर्थी शब्द लिख कर बच्चो में बाट दिया।
कहा - अपने अपने उलटे अर्थ वाले शब्द जिनको मिले है खोज लो।
कुछ देर तक बच्चे सोर कर के पूरे कक्षा में अपने साथी खोजते रहे।
सच कह रहा हूँ
सारे शब्द मिले
उनके विरुद्धर्थी शब्द मिल गए
एक बच्चा वो पर्ची लेकर अकेले खड़ा था
जिसपर मैंने बड़े बड़े अक्षरों में हैवानियत लिखा था।
इंसानियत कहाँ खो गया आज तक नहीं मिला।
मथुरा प्रसाद वर्मा
Monday, 9 January 2017
लाचार हो गया हूँ।
Wednesday, 26 October 2016
न टूटे
तुम इतना दुआ करना कि अपना साथ न छूटे ।।
भले मझधार में हो कश्ती तूफा कहर बरपाये।
तुम इतना हौसला रखना मेरा हाथ न छूटे।।
शौक से मुस्कुराना तुम तुम्हारे मुस्कुराने से
मगर ये ख्याल भी रखना किसी का दिल कही न टूटे।।
महफ़िल है तो महफ़िल में बहुत् होंगे शिकायते
किसी के रूठ जाने से मगर ये महफ़िल न टूटे।
मेरी कविता
ऐ मेरी कविता !
ऐ मेरी कविता !
मैं सोचता हूँ लिख डालूं ,
तुम पर भी एक कविता !
रच डालूं अपने बिखरे कल्पनाओं को
रंग डालूंस्वप्निल इन्द्र धनुषी रंगों से,
तेरी चुनरी !
बिठाऊँ शब्दों की डोली में
और उतर लाऊँ इस धरा पर !
किन्तु मन डरता है
ह्रदय सिहर जाता है ,
तुम्हे अपने घर लाते हुए !
की कहीं तुम टूट न जाओ
उन सपनों की तरह
जो बिखर गए टूट कर !
पलके बिछाएं हूँ अब तक !
उनके चाहत के सपने सजाएँ हूँ अब तक !उनके यादों को सिने में बसाये हूँ अब तक !
वो मासूम चेहरा, वो झील सी गहरी आँखें ;वो उनका मुस्काना ,वो उनका शर्माना,भोली सूरत को आँखों में छुपाये हूँ अब तक !
छुप-छुप के हमफिर हथेली से अपना सहारा छुपाना ;कुछ भी तो नहीं भुला पाए हूँ अब तक !
वो जागी जागी, रातें वो तेरी बातें ;वो जुदाई के दिन , और वो मुलाकातें ;उन्ही यादों में कहाँ , सो पाए हूँ अब तक !
प्यासी-प्यासी सी मेरी भीगी निगाहें ;ताकती रहती है तेरी वो सुनी राहें ; तेरी राहों में पलके बिछाएं हूँ अब तक !
Tuesday, 7 June 2016
उजाले के फरेब
अन्धियारे को
छलना चाहता था।
वो किरण को अपने चेहरे पर,
मलना चाहता था।
वो पगला था ,
दिए की तरह
जलना चाहता था ।
सच्चाई के पथ
पर अकेले,
चलना चाहता था।
उसने सीखा था
जीवन से ,
सिर्फ अन्धियारे से डरना।
बहुत मुश्किल होता है
बिना तेल और बाती के जलना।
वो नहीं जनता था
उजाले के फरेब को।
उजाला टटोलती है,
आदमी के जेब को।
उजाले के चकाचौंध ने
हर आदमी को छला है।
पतंगा है तो
कभी न कभी
जरूर जला है ।
वो गिरा है
अक्चकाकर वहाँ,
जहाँ उजाले का घेरा है।
और
तब से अब तक
उसके आँखों में
सिर्फ अँधेरा है।
मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद"
Wednesday, 18 May 2016
याद तुम्हारी आती है।
जब कोई कली शरमाती है।
खिल उठती है कली कोई,
गलियाँ महक जब जाती है।
तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।
चलती है बसन्ती मन्द पवन,
झूम उठता है तन मन।
चिड़ियों की सुन युगल तान
जब साम ढल जाती है।
तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।
मतवाला हो जाता ये गगन।
झूम कर बरसता जब सावन।
घुमड़-घुमड़ कर काली घटा,
जब धरती पर छा जाती है।
तो सच प्रिये !
याद तुम्हारी आती है।
ऊँचे-ऊँचे परवत शिखर पर ,
नित बहते है जहां निर्झर।
दूर क्षितिज के छोर पर
जहां नभ् भी झुक जाती है।
तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।
कभी तारों की बारातों में।
जब देखूं चाँदनी रातों में।
करती चाँद अठखेली
जब बादल में छिप जाती है।
तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।।
दूर कहीं जब गाँवों में।
बजती है पायल पावों में।
आकर सजन की बाँहों में
नववधू कोई शरमाती है।।
तो सच प्रिये!
याद तुम्हारी आती है।।
अरे सावन ! तुम क्यों आते हो।
बादल बन कर छा जाते हो।
रिमझिम बरखा बरसाते हो।
प्रिय मिलन की आश जगा कर
बिरहन को तरसाते हो।
अरे सावन! तुम क्यों आते हो।
ला कर शीतल पुरवाई तुम,
डाल डाल महकते हो।
विरहा मन मेें आग लगाकर
तुम क्यों मुझे रुलाते हो।
अरे! सावन तुम क्यों आते हो।
प्रेम सुधा तुम बरसा कर
वसुधा की प्यास मिटाते हो।
और इधर तुम प्रेम बावरी के,
मन की प्यास बढ़ाते हो।
अरे सावन! तुम क्यों आते हो।
तेरे कदम भी बहके क्यों?
मैं हुआ मदहोश था पर,
तेरे कदम भी बहके क्यों?
एक बून्द की आस न हो?
छलकते गागर को देखूं ,
क्यों थोड़ी भी प्यास न हो?
गगरी तेरी छलके क्यों?
मेरी अपनी आदत थी।
एक दिया जले इस आँगन में,
यह भी तो मेरी चाहत थी।
तुम शोला बन दहके क्यों?
पतझर ही था मेरा जीवन।
मान विधाता की नियति,
कभी न चाहा मैंने उपवन।
कोई विहंग फिर चहके क्यों।।
Monday, 1 February 2016
मुक्तक
नजर में हो कोई परदा, नजारा हो तो कैसे हो ।।
कोई जब डूबना चाहे , किनारा हो तो कैसे हो।।
किसी के हो न पाये तुम, यहां पल भी मुहब्बत में,
बताओ तुम यहाँ कोई, तुम्हारा हो तो कैसे हो।
Sunday, 10 January 2016
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